जब देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बीस हजार के आंकडे़ के पार पहुंच गई है, और इस वायरस से जंग में देश एक बेहद अहम मोड़ की तरफ बढ़़ रहा है, तब कहीं से भी यह संदेश नहीं उभरना चाहिए था कि इस लड़ाई में शामिल कोई भी योद्धा आहत मन से जुटा हुआ है। फिर डॉक्टर तो इसमें बिल्कुल अग्रिम कतार के सेनानी हैं। ऐसे में, यह सुखद है कि गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन के बाद डॉक्टरों के संगठन ‘आईएमए’ ने अपने सांकेतिक विरोध-प्रदर्शन को वापस ले लिया और सरकार ने भी बगैर वक्त गंवाए उनकी सुरक्षा से जुड़ा नया अध्यादेश जारी कर दिया। इस अध्यादेश में दोषियों के विरुद्ध काफी सख्त प्रावधान किए गए हैं, जो यकीनन डॉक्टरों के असुरक्षा-बोध को दूर करेंगे। पिछले दिनों कुछ जगहों पर मेडिकल टीम के ऊपर जिस तरह के हिंसक हमले हुए थे, उनसे डॉक्टरों में भय और नाराजगी का भाव स्वाभाविक था। इन घटनाओं के विरोध में ही आईएमए ने कल रात नौ बजे सांकेतिक प्रदर्शन और आज काला दिवस मनाने की घोषणा की थी। निस्संदेह, यह सब सांकेतिक ही होता, मगर कोरोना के खिलाफ हमारे एकजुट संघर्ष में यह एक गांठ की मानिंद ही होता।
हमारे डॉक्टर कितने दबाव में काम करते हैं, यह तो अब आम आदमी भी बखूबी जान गया है। उन पर न सिर्फ मरीजों की भारी संख्या का, बल्कि आधे-अधूरे संसाधनों के बीच ही काम करने का दबाव रहता है। और इस वक्त तो खुद अपनी जान जोखिम में डालकर भी अपने फर्ज को अंजाम देने का नैतिक दबाव उन पर सबसे ज्यादा आयद है। ऐसे में, उनके साथ किसी तरह की बदसुलूकी अक्षम्य है। गृह मंत्री ने उचित ही कहा है कि देश उनके साथ खड़ा है। और इसका प्रदर्शन उसने 22 मार्च को ही कर दिया था, जब प्रधानमंत्री की अपील पर तमाम वैचारिक बाडे़बंदियों को छोड़ लोग अपनी बालकनी और दरवाजे पर करतल ध्वनि के लिए निकल आए थे। यही नहीं, कई नामचीन हस्तियों ने कोरोना योद्धाओं के प्रति अपना आभार जताया है। समाज में गुमराह, अंधविश्वासी और शातिर लोग हमेशा से रहे हैं और आगे भी रहेंगे, लेकिन शासन का इकबाल यहीं पर देखा जाता है कि वह अव्यवस्था और असामाजिकों से निपटने में कितना तत्पर है। अच्छी बात यह है कि मेडिकल टीमों पर हमले के मामले में राज्य सरकारों ने पर्याप्त मुस्तैदी दिखाई है।
हम यह कतई नजरंदाज नहीं कर सकते कि इस महामारी ने 200 से भी अधिक मुल्कों को अपनी चपेट में ले रखा है और हमारा देश अब शीर्ष 20 देशों में शामिल है। यह सही है कि हमारे यहां संक्रमण की रफ्तार अपेक्षाकृत धीमी पड़ी है, मगर इसके कई नए रूप भी सामने आए हैं। जैसे, अनेक संक्रमित लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखा, तो कई मरीजों के संक्रमित होने का कारण ही नहीं पता लगा, इसलिए किसी तरह की कोताही, दुस्साहस या लापरवाही इतने दिनों के संयम पर पानी फेर सकती है। कोरोना महामारी से देश-दुनिया की सरकारों को ही नहीं, नागरिकों को भी लड़ना है और वे लड़ भी रहे हैं। इसमें जीत भी आपसी भरोसे और कर्तव्य-निर्वाह से मिलेगी। जिन-जिन देशों में नागरिकों ने सरकार के दिशा-निर्देशों पर अमल किया है, वे आज कहीं बेहतर स्थिति में हैं। साफ है, इस कठिन वक्त में संयम ही सबसे बड़ा संबल है। नागरिकों के लिए भी और तमाम पेशेवरों के लिए भी।